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Showing posts from July, 2017

देश में लोकतंत्र होने का मतलब यह है कि फिजूल के मुद्दों को उछाल

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देश में लोकतंत्र होने का मतलब यह हो चला है कि फिजूल के मुद्दों को उछाल दो, ताकि उन पर बहस होने लगे व उसके चलते वे मुद्दे नेपथ्य में कर दो, जिनसे आम जनता के हित जुड़े हों। इस समय हमारे पास बहस के दर्जनों मुद्दे हैं। बेरोजगारी व महंगाई जैसे घरेलू मुद्दे, तो सीमा पर चीन की बढ़ती दादागीरी जैसे वैश्विक। लेकिन बहस इस पर होने लगी है कि दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की स्मृति में तमिलनाडु के रामेश्वरम् में जो भवन (कलाम मेमोरियल) बनाया गया है, उसमें रखी गई उनकी मूर्ति के हाथ में वीणा क्यों है? भवन की दीवारों पर गीता के श्लोक क्यों खुदवाए गए हैं और उन पर सभी धर्मो के ग्रंथों की सूक्तियां क्यों नहीं खुदवाई गईं? इस बहस को जन्म किसी अल्पसंख्यक समुदाय ने नहीं, बल्कि तमिलनाडु के स्थानीय राजनीतिक दलों ने दिया है। एआईएडीएमके के पन्नीरसेल्वम, तो डीएमके के नेता एमके स्टालिन आदि प्राय: सभी नेता एक स्वर में कह रहे हैं कि मूर्ति में डॉ. कलाम को वीणा बजाते हुए दिखाना सही नहीं है। भवन की दीवारों पर गीता के श्लोक भी गलत हैं। चूंकि यह मुद्दा तमिलनाडु की राजनीति के लिए किसी मसाले से कम न

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, अब करेंगे ठीक से काम

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खबर यह आ रही थी कि नीतीश कुमार के भाजपा से हाथ मिलाने के फैसले से जनता दल-यू के वरिष्ठ नेता शरद यादव नाराज हैं। अत: शुक्रवार को बिहार की नई सरकार जब विधानसभा में अपना बहुमत साबित करेगी, तो वह पराजित भी हो सकती है। मगर अब इस शक्ति-परीक्षण का परिणाम हमारे सामने है। मुख्यमंत्री नीतीश के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार को कुल 122 विधायकों का समर्थन चाहिए था, लेकिन उसे मिला 131 विधायकों का समर्थन। नीतीश ने यह बहुमत एनडीए के घटक दलों यानी बीजेपी, आरएलएसपी, हम (यह जीतन राम माझी की पार्टी है) व एलजेपी के साथ ही तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन से हासिल किया है। मतलब, लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी में फूट होने की जो आशंका व्यक्त की जा रही थी, वह भी गलत साबित हुई है। न फूट आरजेडी में हुई, न जूडीयू में। इस घटनाक्रम के बाद अगर हम इस तथ्य को भूल जाएं कि बिहार की जनता ने विधानसभा चुनाव में आरजेडी-जेडीयू एवं कांग्रेस के गठबंधन को वोट दिया था और इसीलिए नई सरकार जनादेश के खिलाफ है, तो बाकी जो कुछ भी हुआ, वह बिहार के हित में हुआ है। लालू प्रसाद यादव का मिजाज यह है कि उनके हाथ

भारत का कहना है कि, डोकलाम में सैनिकों का डटे रहना आवश्यक

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भारत और चीन ने सिक्किम के डोकलाम इलाके में लगभग महीने भर से नॉन-कॉम्बैट मोड में अपने-अपने तंबू गाड़ रखे हैं। भारत-भूटान-चीन सीमा पर उठ खड़े हुए इस नए बखेड़े को जिस तरह एशिया की इन दोनों महाशक्तियों ने नाक का प्रश्न बना लिया है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि दोनों तरफ के तंबू जल्द ही उखड़ेंगे। चीन का कहना है कि भारतीय सैनिकों ने अवैध रूप से डोकलाम सरहद को पार किया है और भारत का आरोप है कि चीन वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) को मिला रहा है। हाल ही में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट किया है कि अगर चीन सिक्किम में ट्राई-जंक्शन (भारत-चीन-भूटान सीमा का मिलान क्षेत्र) पर यथास्थिति में बदलाव करता है तो इसे भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती माना जाएगा। लेकिन चीन ट्राई-जंक्शन क्षेत्र के बटालंगा तक पहुंचना चाहता है। उसकी कोशिश है कि बटालंगा तक पहुंचने के बाद वह जल्द ही ट्राई-जंक्शन तक पहुंच जाएगा। चीन अगर ऐसा कर लेता है तो फिर ट्राई-जंक्शन के स्टेटस-को (यथास्थिति) पर खतरा आ ही जाएगा। चीन की जिद है कि भारत डोकलाम से अपने सैनिकों को वापस बुलाए और भारत क

कश्मीर समस्या भारत और पाक के बीच, फारूक पर महबूबा का गुस्सा उचित

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जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और राज्य के भूतपूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला को फटकार दिया है। उनका यह रुख एकदम स्वाभाविक है, क्योंकि फारूक ने हाल ही में जो बयान दिया था, वह कश्मीर समस्या को लेकर भारत की उस नीति के खिलाफ था, जिस पर हम आजादी के बाद से ही चल रहे हैं। वह नीति यह है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का एक द्विपक्षीय मसला है, जिसमें तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है। शुरुआत में हमारे इस रुख के पक्ष में ब्रिटेन और अमेरिका जैसे ताकतवर देश नहीं थे। संयुक्त राष्ट्रसंघ भी नहीं मानता था कि कश्मीर समस्या भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मसला है। वह बस सोवियत संघ था, जो हमारे रुख का समर्थन करता था। लेकिन धीरे-धीरे चीजें हमारे पक्ष में होती चली गई हैं। 1974-75 में ब्रिटेन ने कश्मीर को भारत एवं पाकिस्तान का द्विपक्षीय मसला मान लिया था। यह सही है कि अमेरिका लंबे समय तक ड्रामा करता रहा था, पर तीन दशक पहले उसने भी इस समस्या को द्विपक्षीय मसला मान लिया था। संयुक्त राष्ट्रसंघ भी यही मानकर चलता है कि यह समस्या भारत और पाकिस्तान क

शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस में नहीं रहे, उनकी दबाव की राजनीति चली नहीं

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यह अटकलें तो काफी दिनों से लगाई जा रही थीं कि गुजरात कांग्रेस के कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला न केवल अपनी पार्टी को अलविदा कह सकते हैं, बल्कि वे भाजपा में भी शामिल हो सकते हैं। अब इसमें से एक अटकल सही साबित हो गई है। उन्हें चाहे कांग्रेस से निकाल दिया गया हो और चाहे उन्होंने पार्टी को स्वयं छोड़ दिया हो, पर वे अब कांग्रेस में नहीं रहे। शुक्रवार को गांधीनगर में अपने जन्मदिन समारोह में यह उन्होंने ही कहा कि कांग्रेस ने उन्हें निकाल दिया है। उन्होंने भाजपा में न जाने की बात भी कही। जो भी हो, मगर कांग्रेस ने उन्हें निकालने की फिलहाल तो कोई घोषणा नहीं की है। जो कुछ कहा, वह वाघेला ने ही कहा है। सो, ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो इसे उनका राजनीतिक स्टंट ही मानकर चल रहे हैं। यह तो सही है कि गुजरात में कांग्रेस बेहद कमजोर है। उसके पास नेताओं का अकाल है और कार्यकर्ताओं का भी। जो नेतागण उसके पास हैं, वे आपस में लड़ भी रहे हैं। इस कमजोरी के बाद भी माना यही जा रहा है कि यदि कांग्रेस ने वाघेला को निकाला होता तो वह इसकी विधिवत घोषणा करने से डरती नहीं। लिहाजा, राजनीति के जानकारों को लगता है कि

मुखर्जी का कार्यकाल याद करने योग्य, राष्ट्रपतियों के लिए मिसाल बनेंगे प्रणबदा

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आगामी 24 जुलाई को प्रणब मुखर्जी का राष्ट्रपति भवन में अंतिम दिन होगा। लेकिन बतौर राष्ट्रपति उनका कार्यकाल याद किए जाने योग्य है। उनकी सक्रियता, देश के कई समसामयिक मुद्दों पर गंभीर टिप्पणियां व अहम मसलों पर उनके अप्रत्याशित निर्णय लोगों के जेहन में हमेशा बरकरार रहेंगे। भारत में राष्ट्रपतियों का कार्यकाल प्राय: इत-उत के व्याख्यानों, गणतंत्र दिवस समारोह समेत कुछेक सांकेतिक चीजों तक ही केंद्रित रहता है, लेकिन प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल काफी सक्रियता-पूर्ण रहा है। 25 जुलाई-2012 को प्रणबदा ने भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी, जो अब अंतिम पड़ाव पर है। वैसे भी उनका राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनना अचानक ही हुआ था। संभव है कि कांग्रेस नेतृत्व के दिमाग में किसी प्रकार की पूर्व-योजना रही हो, मगर जनसामान्य के लिए तो यह बेहद ही चौंकाने वाला निर्णय था। कारण कि तब प्रणब मुखर्जी वित्तमंत्री के रूप में राजनीतिक रूप से बेहद सक्रिय थे और कांग्रेस के अंदरखाने में ऐसी चर्चा होने लगी थी कि उन्हें साल-2014 के लोकसभा के चुनावों में प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया जा सकता है। यह मांग तार्क

दुश्मन पाकिस्तान है, इसके आधार पर अपनी धारणा को बदलें विशेषज्ञ

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हमारे यहां के कुछ ‘विशेषज्ञ‘ यह कहते रहते हैं कि पाकिस्तान एवं भारत के बीच जो तनाव है, वह दोनों देशों की राजनीति के कारण है, आम जनता को उससे कुछ भी मतलब नहीं है। भारत एवं पाकिस्तान की आम जनता तो मिल-जुलकर ही रहना चाहती है। वैसे तो ये विशेषज्ञ पिछले कोई 70 वर्षो से, जब से पाकिस्तान बना है, तभी से गलत साबित होते आ रहे हैं। लेकिन ये एक बार फिर बुरी तरह से गलत सिद्ध हो गए हैं। किसी भी देश के मीडिया को उसकी जनता की आवाज माना जाता है। हालांकि, उन देशों के मीडिया पर यह बात लागू नहीं होती, जहां किसी पार्टी, व्यक्ति, फौज या परिवार की तानाशाही है। फौज की अप्रत्यक्ष तानाशाही होने के बावजूद पाकिस्तानी मीडिया को बहुत हद तक आजाद यानी जनता की आवाज माना जा सकता है। लेकिन उसके कुछ प्रमुख अखबारों ने सोमवार को जो बेबुनियाद खबर छापी और उसी के आधार पर मंगलवार को उसके समाचार चैनलों ने जो झूठ फैला दिया, उससे पता चलता है कि पाकिस्तानियों के मन में भारत के प्रति कितनी घृणा बजबजा रही है, किसी गंदगी की तरह। वह खबर यह थी कि डोकलाम सेक्टर में चीन की सेना ने हमारी सेना पर रॉकेट से हमला किया और डेढ़ सैकड़ा

Mosul में लड़ाई खत्म, मोसुल ही तय करेगा इराक का भविष्य

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मोसुल में लड़ाई खत्म हो चुकी है। लंबे समय तक इस्लामिक स्टेट के कब्जे में रहा यह शहर अब इराक के नियंत्रण में आ गया है। इराकी प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी ने भी मोसुल की स्थितियों को सुधारने, वहां के जनजीवन को सामान्य करने के लिए बहुत ही तेजी से कदम उठाए हैं। लेकिन उन्हें पता होगा ही कि उनके सामने चुनौतियां ढेरों हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि अब मोसुल के नागरिक आपस में मिल-जुलकर रहेंगे भी तो कैसे? इस्लामिक स्टेट के कब्जे के दौरान वहां की आबादी दो धड़ों में बंट गई थी। सुन्नियों का एक बड़ा धड़ा आतंकवादियों का न सिर्फ समर्थन कर रहा था, बल्कि वह खुद भी आतंकी बन बैठा था। दूसरे धड़े में शिया, कुर्द, यजीदी, ईसाई और कुछ सुन्नी भी शामिल थे, जो आतंकवादियों के निशाने पर थे। हां, इराक के प्रधानमंत्री ने लोगों से पुरानी बातें भूलकर आगे बढ़ने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि अब मोसुल को शिया और सुन्नियों के भाईचारे की मिसाल बनना चाहिए, पर क्या यह आसान है? अपने पड़ौस में कोई ऐसे व्यक्ति को कैसे पसंद कर सकता है, जिसने उसके भाई या बेटे को मार दिया था या बेटी या बहू के साथ रेप किया था। इस्लामिक स

इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी उद्योग पर संकट के बादल छाने लगे

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हमारे देश के इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी उद्योग पर संकट के बादल छाने लगे हैं। पिछले कोई तीन दशक में इस उद्योग का भारी फैलाव हुआ था। इससे देश की वाषिर्क आमदनी में प्रतिवर्ष 150 बिलियन डालर का इजाफा होता था। करीब 40 लाख लोग इस उद्योग से रोजी-रोटी कमा रहे थे। इस उद्योग के माध्यम से देश की कई कंपनियां अमेरिका और यूरोप की कंपनियों को सस्ता तकनीकी श्रम उपलब्ध करा रही थीं। लेकिन अब विश्व स्तर पर इस उद्योग की प्रकृति और कार्यशैली में बहुत सारे परिवर्तन आए हैं। अब इस उद्योग में दिन-प्रतिदिन ऑटोमेशन बढ़ रहा है। रोबोट पर निर्भरता बढ़ रही है। इस तरह की बड़ी मशीनें एवं यंत्र बन गए हैं, जिनसे जरूरी काम लिए जा रहे हैं। इस विकास के कारण ही हमारे देश के तकनीकी श्रमिकों के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसके कारण ऐसी परिस्थितियां भी निर्मित हो रही हैं, जिनके चलते अमेरिका और यूरोप के देशों की हमारे देश की प्रतिभा पर निर्भरता कम हो गई है। यदि इस तरह की स्थितियां लगातार चलती रहीं तो इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ जाएगी। यही आशंका ‘न्यूयार्क टाइम्स’ में प्रकाशित एक लेख में भी व्यक्त

किसानों की समस्या का हल, आंदोलन या आत्महत्या नहीं

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देशभर में चल रहे किसान आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में एक बात साफ हो जानी चाहिए कि आंदोलन, आत्महत्या या केवल कर्जमाफी से किसानों की समस्या(Farmer Problem)का हल नहीं होने वाला है। देश का किसान आज के दौर में ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां उसे कोई विकल्प नजर नहीं आता।  किसानों को मानसून की बेरुखी पर भी, और फसल तैयार होतेे समय भी, आंधी तूफान आने पर भी नुकसान होता है। किसान इन सबसे जैसे तैसे निपट भी लेता है तो बाजार में लागत भी नहीं मिले तो किसान अपने आपको ठगा महसूस करता है। लेकिन मजेदार बात यह है कि इन सभी बातों का फायदा बिचौलियों को मिल रहा है। फसल के समय किसान को पूरा पैसा नहीं मिलता और जरुरत के समय उपभोक्ता को कोई सामान सस्ता नहीं मिलता। इसका खामियाजा सरकार को भी भुगतना पड़ता है। सरकार किसानों की समस्याओं के प्रति गंभीर है। सरकार किसानों की आय को दोगुणा करने के लिए योजनाए बना रही है। खेती में लागत कम करने के सरकारी प्रयासों के साथ ही दीर्घकालीन नीति बनाकर प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन फिर भी परिणाम दिखाई नहीं दे रहे हैं। देशभर में किसानों के कर्ज के बोझ तले दबे होने के कारण आत्महत्या को मु

संघ व राज्य के बीच सहयोग की बेहतर पहल

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देश में बदलाव के लिए नीति आयोग के संचालन परिषद की गत दिनों तीसरी बैठक हुई। इस बैठक से पूर्व आयोग की दो बैठकें वर्ष-2015 में फरवरी और जुलाई माह में हुई थीं। इस बैठक में पूर्व की दोनों बैठकों में लिए गए निर्णयों की समीक्षा की गई और यह देखा गया कि उन निर्णयों पर कहां तक प्रगति हुई है। गौर करें, तो पहली बैठक में लिए गए निर्णयों में प्रमुख था कि संघ और राज्यों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ाया जाएगा। बहरहाल, ताजा बैठक में देश में बदलाव लाने के लिए सात वर्षो के रणनीतिक ब्योरे समेत तीन वर्षो की पूरी कार्ययोजना को प्रस्तुत किया गया। गौरतलब है कि बीते एक अप्रैल को सरकार ने पंचवर्षीय योजना को समाप्त कर दिया था। अब इसकी जगह तीन वर्षीय योजना लाई गई है। इसे थोड़ा और अच्छे से समझें, तो यह योजनाओं की त्रिस्तरीय व्यवस्था है। पंद्रह वर्षो की समग्र कार्ययोजना, सात वर्षो की रणनीति और तीन वर्षो की लघु अवधि योजना। इन तीनों प्रकार की कार्य योजनाओं के पीछे प्रधानमंत्री मोदी के न्यू इंडिया के नारे को धरातल पर साकार करने की मंशा दिखाई देती है। बैठक की अध्यक्षता कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा-‘मैं

यादव की मुश्किलें बढ़ी, अपना ही बोया काट रहे हैं लालू यादव

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लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें इन दिनों बढ़ी हुई हैं। यूं तो वे पहले से चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं एवं जमानत पर जेल से बाहर हैं। मगर अब उनसे लेकर उनके परिवार के सदस्यों तक के खिलाफ एक के बाद एक आरोप जिस तरह से सामने आए तथा सरकारी एजेंसियों द्वारा उन पर कार्रवाई हुई है, उससे साफ है कि लालू की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। अब शायद वक्त आ गया, जब उन्हें अपने पूरे कच्चे-चिट्ठे का हिसाब देना होगा। पिछले दिनों सीबीआई ने लालू के कई ठिकानों पर छापेमारी की। आरोप है कि रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने पटना के चाणक्य होटल के मालिकों के साथ मिली-भगत करके उन्हें रांची एवं पुरी स्थित रेलवे के दो होटल बिना किसी टेंडर के बेहद सस्ते में लीज पर दे दिए। इसके बदले में लालू को पटना में तीन एकड़ जमीन प्राप्त हुई। यह जमीन पहले तो उनके सहयोगी प्रेमचंद गुप्ता की कंपनी को दी गई, जो कंपनी बाद में लालू और उनके परिवार की हो गई। यह वही भूमि है, जिस पर तेजस्वी यादव बड़ा शॉपिंग मॉल बनाने वाले थे। लेकिन अब इस मामले के सामने आ जाने के बाद प्रवर्तन निदेशालय लालू पर मनी लॉड्रिंग का मुकदमा दर्ज करने जा रहा, जिसक

मोदी नई परंपरा की शुरुआत की तैयारी में, चीन विरोधियों को जोड़ने की पहल

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गणतंत्र दिवस समारोह में विकसित देशों के राष्ट्रध्यक्षों को न बुलाने की परंपरा तोड़ चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब एक नई परंपरा की शुरुआत करने की तैयारी में हैं। बताने की जरूरत नहीं कि मोदी के कार्यकाल में अमेरिकी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति हमारे गणतंत्र दिवस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर चुके हैं, लेकिन 2018 के लिए सरकार की तैयारी आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन) के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाने की है। अभी इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देश से साझा नहीं की गई है, मगर यह स्पष्ट है कि अगले वर्ष गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में बुलाया आसियान देशों के नेताओं को ही जाएगा। आसियान में 10 देश शामिल हैं-लाओ पीडीआर, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, वियतनाम और कंबोडिया। वैसे तो ये सभी देश किसी न किसी कारण से चीन से दुखी हैं, पर फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई और मलेशिया का चीन से सीधा झगड़ा है। दक्षिण चीन सागर को चीन अपना मानता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक एक निश्चित दूरी तक उन सभी देशों का समुद्र पर अधिकार होता है, जिनका अपना भू-भाग समुद्र तट तक विस

आईसीएआई के स्थापना दिवस, पर मोदी ने कही एकदम सही बात

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आईसीएआई (चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की संस्था) के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भी कहा है, उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि देश में कालेधन का कारोबार अब भी चल रहा है और वह भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने एक सबसे बड़ी समस्या अब भी है। वैसे, उन्होंने यह भी बताया कि नोटबंदी के बाद देशभर में 37 हजार नकली कंपनियों की पहचान की जा चुकी है व सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने की तैयारी में है। मगर इस आशंका को भी तो खारिज नहीं किया जा सकता कि इन 37 हजार के अलावा और भी नकली कंपनियां चल रही हो सकती हैं। वस्तुत: इस आशंका का आधार भी प्रधानमंत्री के भाषण का वह अंश ही है, जिसमें उन्होंने कहा है कि देश की तीन लाख कंपनियां संदेह के दायरे में हैं। इसका सीधा अर्थ यही है कि 37 हजार दिखावटी कंपनियों के अलावा देश में और भी बहुत सी कंपनियां हो सकती हैं, जो कागजों पर चल रही होंगी, सरकार की नजरों से बचकर। प्रधानमंत्री द्वारा बताया गया यह तथ्य भी गौरतलब है कि जीएसटी लागू होने से मात्र 48 घंटे पहले एक लाख से अधिक कंपनियों ने अपना नाम रजिस्टर्ड कंपनियों की सूची से बाहर कर लिया। जब इस तरह के कारनामे हो ह

पहला धर्म इंसानियत

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एक राजा प्रतिदिन रात में यह देखने के लिए घूमते थे कि कहीं कोई अधिकारी प्रजा को सता तो नहीं रहा, कोई दुखी तो नहीं है या कोई लुटेरा तो नहीं घूम रहा है। ऐसे ही एक रात को घूमते हुए वे नदी किनारे जा पहुंचे। उन्होंने देखा कि वहां एक युवक लेटा हुआ है। राजा ने पास जाकर पूछा- तुम कौन हो। युवक एक अजनबी को इतनी रात गए घोड़े पर देख सहम गया। फिर बोला-मैं लक्ष्मी का दामाद हूं। अपनी पत्नी को लेने जा रहा हूं, पर मुझे इतना जोर का बुखार चढ़ गया है कि मैं एक कदम भी नहीं चल सकता। रातभर यहां आराम कर लूं, तो सबेरे चलने लायक हो जाऊंगा। राजा ने उसके माथे पर हाथ रखा तो वाकई वह तप रहा था। राजा ने कहा-जाड़े के दिन हैं, यहां अकेले में रहना ठीक नहीं। तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें पहुंचा देता हूं। राजा भेष बदले हुए थे, सो युवक उन्हें पहचान नहीं सका। वह थोड़ा हिचकिचाया, पर राजा ने उसे बड़े प्रेम से उठाकर बैठाया और बोले- तुम बीमार हो, घोड़े पर बैठ जाओ। मैं घोड़े की लगाम पकड़े चलता हूं। सहारा देकर उन्होंने युवक को घोड़े पर बैठा दिया। राजा ने रास्ते में मालूम कर लिया कि युवक राजमहल में काम करने वाली लक्ष्मी का दाम

नैतिक शिक्षा आज की सबसे बड़ी जरूरत, नैतिक शिक्षा का बड़ा स्रोत गीता

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हमारे देश के प्राय: सभी विद्यालयों में बच्चों को नैतिक शिक्षा देने की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है और अगर दिया भी जाता है तो वह कामचलाऊ होता है। ऐसे में यह खबर सुखद है कि अब विद्यालयों में गीता भी पढ़ाई जाएगी। यहां गीता के महत्व को बताने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसके महत्व से हमारा देश ही नहीं, पूरी दुनिया के कई देश अच्छी तरह से परिचित हैं। गौरतलब है कि भारत के स्कूलों में भगवद्गीता की पढ़ाई को अनिवार्य करने वाला विधेयक जल्दी ही आ रहा है। इस विधेयक में नियम की अवमानना करने वाले संस्थान की मान्यता रद्द करने का प्रावधान भी होगा। इसमें कहा गया है कि गीता के सुविचार एवं शिक्षाएं युवा पीढ़ी को बेहतर नागरिक बनाएंगी तथा इससे उनके व्यक्तित्व में निखार आएगा। बच्चे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। जब सूचना क्रांति आई है, तो उसके दुष्परिणाम भी हैं। अत: हमें अपने बच्चों को टेलीविजन, मोबाइल, इंटरनेट व अन्य माध्यमों से परोसी जा रही अनुचित सामग्रियों से बचाना है। युवा पीढ़ी में भटकाव व उसमें नैतिक मूल्यों में आई गिरावट को दूर करने के लिए गीता के माध्यम से बच्चों को संस्कार देने होंगे। गीता बच्च