देश में लोकतंत्र होने का मतलब यह है कि फिजूल के मुद्दों को उछाल
देश में लोकतंत्र होने का मतलब यह हो चला है कि फिजूल के मुद्दों को उछाल दो, ताकि उन पर बहस होने लगे व उसके चलते वे मुद्दे नेपथ्य में कर दो, जिनसे आम जनता के हित जुड़े हों। इस समय हमारे पास बहस के दर्जनों मुद्दे हैं। बेरोजगारी व महंगाई जैसे घरेलू मुद्दे, तो सीमा पर चीन की बढ़ती दादागीरी जैसे वैश्विक। लेकिन बहस इस पर होने लगी है कि दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की स्मृति में तमिलनाडु के रामेश्वरम् में जो भवन (कलाम मेमोरियल) बनाया गया है, उसमें रखी गई उनकी मूर्ति के हाथ में वीणा क्यों है? भवन की दीवारों पर गीता के श्लोक क्यों खुदवाए गए हैं और उन पर सभी धर्मो के ग्रंथों की सूक्तियां क्यों नहीं खुदवाई गईं? इस बहस को जन्म किसी अल्पसंख्यक समुदाय ने नहीं, बल्कि तमिलनाडु के स्थानीय राजनीतिक दलों ने दिया है। एआईएडीएमके के पन्नीरसेल्वम, तो डीएमके के नेता एमके स्टालिन आदि प्राय: सभी नेता एक स्वर में कह रहे हैं कि मूर्ति में डॉ. कलाम को वीणा बजाते हुए दिखाना सही नहीं है। भवन की दीवारों पर गीता के श्लोक भी गलत हैं। चूंकि यह मुद्दा तमिलनाडु की राजनीति के लिए किसी मसाले से कम न