देश व समाज में बेटियों के प्रति हो रहे दोगलेपन को खत्म करना होगा, बेटियों के प्रति सोच बदलें हम
बजट से पहले पेश होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण में पहली बार लड़का और लड़की में भेद करने के सामाजिक पहलू को उजागर किया गया है। सर्वे में कहा गया है कि एक परिवार तब तक संतान पैदा करता रहता है, जब तक उसके यहां बेटा नहीं हो जाता। लेकिन यह सोच देश पर कितनी भारी पड़ रही है, इसका अंदाजा किसी को नहीं है। एक अदद लड़के की चाहत में देश में 2.1 करोड़ ‘अनचाही’ लड़कियां पैदा हुईं। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में यह बात कही गई है। सर्वे के अनुसार यह अनुमानित आंकड़ा उन लड़कियों का है, जो बेटे की चाह के बावजूद पैदा हुई हैं या जब अभिभावकों ने अपनी इच्छा के अनुसार बेटों की संख्या होने पर बच्चा पैदा नहीं करना चाहा था। यही नहीं 6.3 करोड़ गायब बेटियों का आंकड़ा भी सर्वे में दिया गया है। कहने का अर्थ यह है कि गर्भ में बेटी होने के कारण 6.3 करोड़ भ्रूणों की हत्या हुई। हर साल लगभग 20 लाख ऐसी बेटियां गायब हो जाती हैं। बेटों की चाह में बेटियों से हो रहा दोगलापन ही देश और समाज को आगे बढ़ाने में बाधक है, जबकि आज बेटियों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। बेटियां आज हर क्षेत्र में बेटों के मुकाबले डटी हैं। सेना हो