सिनेमा की ‘श्रीदेवी’ का चले जाना, दिल अब भी मानने को तैयार नहीं, मगर उनके अभिनय की छाप हमारे दिलों में हमेशा बनी रहेगी
वो रोमांटिक हो तो चांदनी बन जाती है। चुलबुली हो तो चालबाज बन जाती है। नाचे तो नगीना है। गुस्से में हो तो मॉम बन जाती है और अगर रूठ जाए तो उम्रभर का सदमा दे जाती है। श्रीदेवी चली गई हैं, लेकिन दिल अब भी मानने को तैयार नहीं। माने भी कैसे, 55 साल के जीवन में 51 साल तो सिनेमा को ही दिए हैं। मगर सच यही है कि श्रीदेवी अब हमारे बीच नहीं हैं। मगर उनके अभिनय की छाप हमारे दिलों में हमेशा बनी रहेगी। कहते हैं कि ईश्वर मनुष्य को पूर्ण नहीं बनाता, कोई न कोई कमी छोड़ ही देता है। किसी को रूप देता है तो गुण नहीं और किसी को गुण देता है तो रूप में कमी कर देता है, लेकिन इस बात के अपवाद भी होते हैं। भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार श्रीदेवी वैसे ही अपवादों में से एक थीं। उन्हें ईश्वर ने संपूर्णता से रचा था। रूप का अपार वैभव भी दिया था और विलक्षण प्रतिभा का खजाना भी। परंतु, शायद ईश्वर को स्वीकार नहीं था कि उसकी ये मोहक रचना अधिक समय तक आदमियों की दुनिया में रहे, सो उसने बड़ी जल्दी ही भारतीय सिनेमा की इस श्री को अपने पास बुला लिया। 25 फरवरी को लगभग चौवन वर्ष की अल्पायु में श्रीदेवी भारतीय सिनेमा